हरिगोपाल गौड़ जी ने नाना की चिट्ठी नाम से प्रति सप्ताह बच्चों के लिए चिट्ठी लिखी थीं। इनके द्वारा वे बच्चों को शिक्षा, अनुशासन, कर्तव्य सिखाते हैं वहीँ भ्रम, अन्धविश्वास से भी दूर ले जाते हैं। उनकी समस्त चिट्ठिया "नानाजी की चिट्ठिया" नाम से पुस्तकाकार हैं।

Friday, November 13, 2009

वर्षा ऋतु - नानाजी की चिट्ठी

प्रिय पाठक
वर्षा ऋतु का स्वागत केवल किसान ही नहीं सभी उसका स्वागत करते हैं। कठिनाइयाँ ही वर्षा ऋतु के आगमन पर समाप्त हो जातीं हैं। समस्त प्राणी जगत के लिए भोजन व्यवस्था यही ऋतु ही करती है। परन्तु प्रत्येक मौसम के द्वारा निर्मित कुछ नयी समस्याएँ हमारे लिए उत्पन्न हो जाती हैं। विशेष तौर से तुम्हारे लिए बरसात कुछ कष्ट भी लाती है। जैसे बुखार, कीड़े-मकोड़े का प्रकोप, साँप-बिच्छुओं का सक्रिय होना, हैजा जैसे संक्रामक रोगों का फैलना आदि। इस मौसम की बीमारियों से बचने के लिए तुम्हें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना है ताकि बीमार पड़कर तुम अध्ययन, खेलकूद और स्वादिष्ट व्यंजनों से कुछ समय के लिए वंचित न हो जाओ। तुम्हारी उम्र में घर में कैद होना किसे अच्छा लगता है। तो आओं देखें कि तुम्हें कौन सी सावधानियाँ बरतनी हैं, जिससे वर्षा ऋतु का आनन्द उसी प्रकार ले सको जैसे अन्य मौसम की विशेषताओं का आनन्द और सहज लाभ तुमको प्राप्त होता है।
1- प्रत्येक स्थिति में अपना हाजमा ठीक रखना है।
2- हल्का और ताजा गरम भोजन करना है।
3- यदि बासी खाना लेने की मजबूरी है तो उसे गरम करके लेना है।
4- अनावश्यक रूप से वर्षा में भीगने से बचना चाहिए।
5- भीगने पर सर्वप्रथम सिर को अच्छी तरह से पोंछना है।
6- शर्ट-पैंट आदि को सदैव अच्दी तरह से झटक कर पहनना है।
7- बाजार के कटे-फटे फल, खुली रखी हुई खाने की चीजों को नहीं खाना है।

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याद रखो - अधिक भोजन से बचना है।
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लेखक - हरिगोपाल गौड़
चित्र साभार गूगल छवियों से

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