हरिगोपाल गौड़ जी ने नाना की चिट्ठी नाम से प्रति सप्ताह बच्चों के लिए चिट्ठी लिखी थीं। इनके द्वारा वे बच्चों को शिक्षा, अनुशासन, कर्तव्य सिखाते हैं वहीँ भ्रम, अन्धविश्वास से भी दूर ले जाते हैं। उनकी समस्त चिट्ठिया "नानाजी की चिट्ठिया" नाम से पुस्तकाकार हैं।

Thursday, December 3, 2009

नववर्ष 95 - नानाजी की चिट्ठी


प्रिय पाठक,
तीन दिवस पूर्व तुमने नववर्ष 1995 में पदार्पण किया। पहली जनवरी के आगमन का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वागत किया जाता है। हम एक दूसरे के प्रति सफलता, उन्नति और खुशियों की कामना व्यक्त करते हैं। इन क्रियाओं का एकमात्र आधार आशावादिता होता है। उक्त भावनाओं में हमारी इच्छाएँ और विश्वास अंतर्निहित होते हैं। तुम्हारी क्या कामनाएँ हैं और तुम 1995 से क्या आशा करते हो? सोचकर उत्तर देने का प्रयास करो। वार्षिक परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर उत्तीर्ण होने की कामना पूर्णतया स्वाभाविक है परन्तु सोचने मात्र से इच्छा की पूर्ति संभव नहीं है।

1) क्या तुम उस हेतु उचित प्रयत्न कर रहे हो?
2) क्या अभी तक किए गए प्रयत्न पर्याप्त और संतोषजनक रहे हैं।
3) क्या तुमको वांछित प्रतिफल प्राप्त हुआ है?
4) यदि नहीं, तो उस के कारण क्या हैं?


नववर्ष तुमको कुछ निश्चय करने का अवसर प्रदान करता है। निश्चय करो कि

1) तुम्हें अपने अध्ययन के प्रति अधिक गम्भीर होना है।
2) अपने प्रयत्नों में निरन्तरता रखना है।
3) मार्ग में जो भी रुकावटें आतीं हैं उनसे विचलित नहीं होना है।

याद रखो - अच्छे विद्यार्थी बनने में

1) सादा, अल्प भोजन रुकावट नहीं है।
2) सस्ते, सादा वस्त्र रुकावट नहीं हैं।
3) साधारण बिस्तर (वह भी फर्श पर) रुकावट नहीं है।
4) बिजली का अभाव रुकावट नहीं है।
5) टी0वी0 जैसी सुविधाओं का अभाव रुकावट नहीं है।

रुकावटें हैं-

1) टी0वी0 सिनेमा के कारण देर से सोना।
2) प्रातः देर से सोकर उठना।
3) परिवार में कुछ अभावों के कारण दुःखी होना।
4) नियमित अध्ययन न करना।
5) अपने निजी कार्यों के लिए दूसरों पर निर्भर रहना।
6) अपने व्यवहार में शालीनता न बरतना।
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लेखक - हरिगोपाल गौड़
फोटो गूगल छवियों से साभार

Friday, November 20, 2009

त्यौहार - नानाजी की चिट्ठी

प्रिय पाठक,
तुम जानते हो कि हमारा देश त्योहारों के लिए विख्यात है। प्रत्येक अवसर पर खाने-पीने की व्यवस्था रहती है। धनी व निर्धन अपनी क्षमता के अनुसार ऐसे आयोजन करते हैं। यहाँ तक कि मृत्यु भोज भी उतनी शालीनता से सम्पन्न होते हैं। तुम सब इन आयोजनों को टी0वी0 सीरियल की तरह देखते और इनमें सम्मिलित होते हो। परन्तु तुम्हें हम कुछ अति महत्वपूर्ण संदेश प्रेषित करते हैं। यदि तुम इन्हें समझने का प्रयास करो तो तुम भारतीय जीवन पद्धति को अधिक आदर की दृष्टि से देखने लगोगे। संदेश की मुख्य बातें निम्न प्रकार है-
1) उक्त अवसरों पर अपने पराये की भावना गौण हो जाती है।
2) उक्त अवधि में हम अभावों को भुला देते हैं।
3) इनमें खोकर हम उन आनन्दमयी, सुखद क्षणों को चिरस्थायी बनाने का इरादा बनाते हैं।
4) आधुनिक युग की व्यस्तता में भी हमें एक दूसरे को जानने का अवसर प्राप्त होता है।
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याद रखो- ये आयोजन - रक्षाबन्धन, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, दशहरा, दुर्गा पूजा, ईद, क्रिसमस, होली आदि - हमें अपनी संस्कृति के प्रति सजग बनाते हैं।
समाज में सौहाद्र सजीव हो उठता है।
जीवन की ऊँच नीच को सहने की शक्ति बनी रहती है।
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लेखक - हरिगोपाल गौड़
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चित्र साभार गूगल छवियों से

Friday, November 13, 2009

वर्षा ऋतु - नानाजी की चिट्ठी

प्रिय पाठक
वर्षा ऋतु का स्वागत केवल किसान ही नहीं सभी उसका स्वागत करते हैं। कठिनाइयाँ ही वर्षा ऋतु के आगमन पर समाप्त हो जातीं हैं। समस्त प्राणी जगत के लिए भोजन व्यवस्था यही ऋतु ही करती है। परन्तु प्रत्येक मौसम के द्वारा निर्मित कुछ नयी समस्याएँ हमारे लिए उत्पन्न हो जाती हैं। विशेष तौर से तुम्हारे लिए बरसात कुछ कष्ट भी लाती है। जैसे बुखार, कीड़े-मकोड़े का प्रकोप, साँप-बिच्छुओं का सक्रिय होना, हैजा जैसे संक्रामक रोगों का फैलना आदि। इस मौसम की बीमारियों से बचने के लिए तुम्हें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना है ताकि बीमार पड़कर तुम अध्ययन, खेलकूद और स्वादिष्ट व्यंजनों से कुछ समय के लिए वंचित न हो जाओ। तुम्हारी उम्र में घर में कैद होना किसे अच्छा लगता है। तो आओं देखें कि तुम्हें कौन सी सावधानियाँ बरतनी हैं, जिससे वर्षा ऋतु का आनन्द उसी प्रकार ले सको जैसे अन्य मौसम की विशेषताओं का आनन्द और सहज लाभ तुमको प्राप्त होता है।
1- प्रत्येक स्थिति में अपना हाजमा ठीक रखना है।
2- हल्का और ताजा गरम भोजन करना है।
3- यदि बासी खाना लेने की मजबूरी है तो उसे गरम करके लेना है।
4- अनावश्यक रूप से वर्षा में भीगने से बचना चाहिए।
5- भीगने पर सर्वप्रथम सिर को अच्छी तरह से पोंछना है।
6- शर्ट-पैंट आदि को सदैव अच्दी तरह से झटक कर पहनना है।
7- बाजार के कटे-फटे फल, खुली रखी हुई खाने की चीजों को नहीं खाना है।

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याद रखो - अधिक भोजन से बचना है।
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लेखक - हरिगोपाल गौड़
चित्र साभार गूगल छवियों से

Thursday, November 12, 2009

अच्छा मित्र - नाना की चिट्ठी

प्रिय पाठक,
यह नानू का प्रथम पत्र है। मैं तुम से उन विषयों पर बात करूँगा जिन पर तुम्हें अपने विद्यालय और खेलकूद में व्यस्त रहने के कारण ध्यान देने का समय नहीं मिलता।
तुम्हें मित्र बनाना अवश्य पसंद है। एक सच्चा मित्र सदैव तुम्हारा साथ देगा। वह सही सलाह देगा और तुम्हें गलत रास्ते पर जाने से रोकेगा। परन्तु आज ऐसा मित्र अति सौभाग्यशाली व्यक्ति को ही मिलता है।
आज मैं तुम्हें ऐसे मित्र के बारे में बताता हूँ जो कभी तुम्हारा साथ नहीं छोड़ेगा। वह मित्र है ‘एक अच्छी पुस्तक’। नया ज्ञान, ढेर सारी जानकारी, जीवन के सभी पक्षों से परिचय और मनोरंजन उससे प्राप्त होता है। अन्य लोगों के सम्बन्ध में, उनके धर्म, रीति-रिवाज और विचारों की जानकारी देकर एक अच्छी पुस्तक हमें उनके प्रति अधिक उदार एवं संवेदनशील बनाती है।
सभी महान व्यक्तियों की पुस्तकें अच्छी मित्र बनी हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अनेक जेल यात्राओं में अपना समय पुस्तकें पढ़कर गुजारा और ‘भारत एक खोज’ और ‘विश्व इतिहास’ जैसी अच्छी पुस्तकों की रचना की।
अपने-अपने धार्मिक ग्रन्थों (गीता, कुरान, बाइबिल, गरुग्रंथ साहिब आदि) के अतिरिक्त अनेक अच्छी पुस्तकें विक्रेता के यहाँ मिलतीं हैं। अपने विद्यालय की लाइब्रेरी में तुम अपने कक्षा-शिक्षक की सहायता से पुस्तकें प्राप्त कर सकते हो।
सचमुच, एक अच्छी पुस्तक से बढ़कर तुम्हारा और कोई सच्चा मित्र नहीं होता।
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लेखक-हरिगोपाल गौड़